व्यक्ति सिद्धियां इसलिए प्राप्त करना चाहता है, क्योंकि या तो वह उससे सांसारिक लाभ प्राप्त करना चाहता है या फिर आध्यात्मिक लाभ।
हमारे हिंदू धर्म में हजारों तरह की विद्याओं और साधनाओं का वर्णन मिलता है। साधना से सिद्धियां प्राप्त होती हैं।

मूलत: साधना के चार प्रकार माने जा सकते हैं

  1. तंत्र साधना,
  2. मंत्र साधना,
  3. यंत्र साधना और
  4. योग साधना

चारों ही तरह की साधना के कई उप प्रकार हैं।

तंत्र विद्या, साधना या तंत्र शास्त्र का नाम सुनते ही लोगों में भय व्याप्त हो जाता है। माना जाता है कि यह कोई भयानक विद्या या अघोरियों की साधना होगी। लेकिन ऐसा नहीं है अघोर साधना अलग होती है और तंत्र साधना अलग।

तंत्र, मंत्र और यंत्र में तंत्र को सबसे पहले रखा गया है। तंत्र एक रहस्यमयी विद्या है। हिन्दू धर्म के साथ ही बौद्ध और जैन धर्म में भी इस विद्या का प्रचलन है ।

तंत्र में शरीर है महत्वपूर्ण : साधारण अर्थ में तंत्र का अंर्थ तन से, मंत्र का अर्थ मन से और यंत्र का अर्थ किसी मशीन या वस्तु से होता है।

तंत्र का एक दूसरा अर्थ होता है व्यवस्था। तंत्र मानता है कि हम शरीर में है यह एक वास्तविकता है। भौतिक शरीर ही हमारे सभी कार्यों का एक केंद्र है। अत: इस शरीर को हर तरह से तृप्त और स्वस्थ रखना अत्यंत जरूरी है। इस शरीर की क्षमता को बढ़ाना जरूरी है। इस शरीर से ही अध्यात्म को साधा जा सकता है।

योग भी यही कहता है।तंत्र का मांस, मदिरा और संभोग से किसी भी प्रकार का संबंध नहीं है, जो व्यक्ति इस तरह के घोर कर्म में लिप्त है, वह कभी तांत्रिक नहीं बन सकता। तंत्र को इसी तरह के लोगों ने बदनाम कर दिया है। तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। इसके लिए अंतर्मुखी होकर साधनाएं की जाती हैं।

तंत्र के ग्रंथ : तंत्र को मूलत: शैव आगम शास्त्रों से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन इसका मूल अथर्ववेद में पाया जाता है। तंत्र शास्त्र 3 भागों में विभक्त है

  • आगम तंत्र
  • यामल तंत्र और
  • मुख्‍य तंत्र।

आगम में शैवागम, रुद्रागम और भैरवागमन प्रमुख है।

वाराहीतंत्र के अनुसार जिसमें सृष्टि प्रलय, देवताओं की पूजा, सत्कर्यों के साधन, पुरश्चरण, षट्कर्मसाधन और चार प्रकार के ध्यानयोग का वर्णन हो उसे 'आगम' कहते हैं।

जिसमें सृष्टितत्त्व, ज्योतिष, नित्य कृत्य, क्रम, सूत्र, वर्णभेद और युगधर्म का वर्णन हो उसे 'यामल' कहते हैं।

इसी तरह जिसमें सृष्टि, लय, मन्त्र, निर्णय, तीर्थ, आश्रमधर्म, कल्प, ज्योतिषसंस्थान, व्रतकथा, शौच-अशौच, स्त्रीपुरुषलक्षण, राजधर्म, दानधर्म, युगधर्म, व्यवहार तथा आध्यात्मिक नियमों का वर्णन हो, वह 'मुख्य तंत्र' कहलाता है।

वाराही तंत्र के अनुसार तंत्र के नौ लाख श्लोकों में एक लाख श्लोक भारत में हैं।

तंत्र साहित्य विस्मृति के चलते विनाश और उपेक्षा का शिकार हो गया है। अब तंत्र शास्त्र के अनेक ग्रंथ लुप्त हो चुके हैं। वर्तमान में प्राप्त सूचनाओं के अनुसार 199 तंत्र ग्रंथ हैं। तंत्र का विस्तार ईसा पूर्व से तेरहवीं शताब्दी तक बड़े प्रभावशाली रूप में भारत, चीन, तिब्बत, थाईदेश, मंगोलिया, कंबोज आदि देशों में रहा।

तंत्र को तिब्बती भाषा में ऋगयुद कहा जाता है। समस्त ऋगयुद 78 भागों में है जिनमें 2640 स्वतंत्र ग्रंथ हैं। इनमें कई ग्रंथ भारतीय तंत्र ग्रंथों का अनुवाद है और कई तिब्बती तपस्वियों द्वारा रचित है।

हस्यमयी विद्याएं : तंत्र में बहुत सारी विद्याएं आती है उसी में एक है गुह्य-विद्या। गुह्य का अर्थ है रहस्य। तंत्र विद्या के माध्‍यम से व्यक्ति अपनी आत्मशक्ति का विकास करके कई तरह की शक्तियों से संपन्न हो सकता है। यही तंत्र का उद्देश्य है।

इसी तरह तंत्र से ही सम्मोहन, त्राटक, त्रिकाल, इंद्रजाल, परा, अपरा और प्राण विद्या का जन्म हुआ है।

तंत्र से वशीकरण, मोहन, विद्वेषण, उच्चाटन और स्तम्भन क्रियाएं भी की जाती है।

इसी तरह मनुष्य से पशु बन जाना, गायब हो जाना, एक साथ 5-5 रूप बना लेना, समुद्र को लांघ जाना, विशाल पर्वतों को उठाना, करोड़ों मील दूर के व्यक्ति को देख लेना व बात कर लेना जैसे अनेक कार्य ये सभी तंत्र की बदौलत ही संभव हैं। तंत्र शास्त्र के मंत्र और पूजा अलग किस्म के होते हैं

शांति, वक्ष्य, स्तम्भनानि, विद्वेषणोच्चाटने तथा।
गोरणों तनिसति षट कर्माणि मणोषणः॥

अर्थात शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण ये छ: तांत्रिक षट् कर्म।

इसके अलावा नौ प्रयोगों का वर्णन मिलता है:-

मारण मोहनं स्तम्भनं विद्वेषोच्चाटनं वशम्‌।
आकर्षण यक्षिणी चारसासनं कर त्रिया तथा॥

अर्थात: मारण, मोहनं, स्तम्भनं, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, यक्षिणी साधना, रसायन क्रिया तंत्र के ये 9 प्रयोग हैं।

रोग कृत्वा गृहादीनां निराण शन्तिर किता।
विश्वं जानानां सर्वेषां निधयेत्व मुदीरिताम्‌॥
पूधृत्तरोध सर्वेषां स्तम्भं समुदाय हृतम्‌।
स्निग्धाना द्वेष जननं मित्र, विद्वेषण मतत॥
प्राणिनाम प्राणं हरपां मरण समुदाहृमत्‌।

जिससे रोग, कुकृत्य और ग्रह आदि की शांति होती है, उसको शांति कर्म कहा जाता है और जिस कर्म से सब प्राणियों को वश में किया जाए, उसको वशीकरण प्रयोग कहते हैं तथा जिससे प्राणियों की प्रवृत्ति रोक दी जाए, उसको स्तम्भन कहते हैं तथा दो प्राणियों की परस्पर प्रीति को छुड़ा देने वाला नाम विद्वेषण है और जिस कर्म से किसी प्राणी को देश आदि से पृथक कर दिया जाए, उसको उच्चाटन प्रयोग कहते हैं तथा जिस कर्म से प्राण हरण किया जाए, उसको मारण कर्म कहते हैं

तांत्रिक मंत्र

तांत्रिक मंत्र : मुख्यत: 3 प्रकार के मंत्र होते हैं-

  • वैदिक मंत्र,
  • तांत्रिक मंत्र और
  • शाबर मंत्र।

तांत्रिकों के बीज मंत्रों में ह्नीं, क्लीं, श्रीं, ऐं, क्रूं आदि तरह के अक्षरों का उपयोग किया जाता है। जिस भी मंत्र में प्रारंभ में इस तरह के अक्षर होते हैं वे सभी तांत्रिक मंत्र होते हैं।

एक अक्षर से पता चलता है कि यह किस देवता का मंत्र है

  • जैसे लक्ष्मी माता के लिये श्रीं का उपयोग करते हैं।
  • काली माता के लिये क्रीं का
  • तंत्रिक मंत्रों में भी एकाक्षरी (काली) मंत्र ॐ क्रीं,
  • तीन अक्षरी काली मंत्र ॐ क्रीं ह्रुं ह्रीं॥,
  • पांच अक्षरी काली मंत्र ॐ क्रीं ह्रुं ह्रीं हूँ फट्॥,
  • षडाक्षरी काली मंत्र ॐ क्रीं कालिके स्वाहा॥,
  • सप्ताक्षरी काली मंत्र ॐ हूँ ह्रीं हूँ फट् स्वाहा॥,
  • श्री दक्षिणकाली पूर्ण मंत्र ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणकालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं॥ या ॐ ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं दक्षिणकालिके ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥



तंत्र साधना के देवी और देवता

तंत्र साधना में देवी काली, अष्ट भैरवी, नौ दुर्गा, दस महाविद्या, 64 योगिनी आदि देवियों की साधना की जाती है।

इसी तरह देवताओं में बटुक भैरव, काल भैरव, नाग महाराज की साधना की जाती है।

उक्त की साधना को छोड़कर जो लोग यक्षिणी, पिशाचिनी, अप्सरा, वीर साधना, गंधर्व साधना, किन्नर साधना, नायक नायिका साधान, डाकिनी-शाकिनी, विद्याधर, सिद्ध, दैत्य, दानव, राक्षस, गुह्मक, भूत, वेताल, अघोर आदि की साधनाएं निषेध है

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