कलयुग में जीवन के विभिन्न पहलुओं में पापों का संग्रह अधिक होता है। इस संग्रह को दूर करने के लिए सनातन धर्म में एकादशी व्रतों का महत्व अत्यधिक है।इस बार यह व्रत 05 अप्रैल को है। इस तिथि पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु के संग धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने के विधान है। 

पापमोचनी एकादशी का महत्व


पापमोचनी एकादशी के नाम से ही सिद्ध होता है, पापों का नाश करने वाली एकादशी। पुराणों में बताया गया है कि जो मनुष्य तन मन की शुद्धता और नियम के साथ पापमोचनी एकादशी का व्रत करता है और जीवन में दोबारा कभी गलत काम न करने का संकल्प लेता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। उसे सभी दुखों से छुटकारा मिलता है और मनुष्य को मानसिक शांति प्राप्ति होती है। 

  

पापमोचनी एकादशी व्रत कथा


धार्मिक मान्यता के अनुसार पुरातन काल में चैत्ररथ नामक एक बहुत सुंदर वन था। इस वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या किया करते थे। इसी वन में देवराज इंद्र गंधर्व कन्याओं, अप्सराओं और देवताओं के साथ विचरण करते थे। मेधावी ऋषि शिव भक्त थे लेकिन अप्सराएं शिवद्रोही कामदेव की अनुचरी थी, इसलिए एक समय कामदेव ने मेधावी ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए मंजू घोषा नामक अप्सरा को भेजा। उसने अपने नृत्य, गायन और सौंदर्य से मेधावी मुनि का ध्यान भंग कर दिया और मुनि मेधावी मंजूघोषा अप्सरा पर मोहित हो गए। इसके बाद अनेक वर्षों तक मुनि ने मंजूघोषा के साथ विलास में समय व्यतीत किया। बहुत समय बीत जाने के पश्चचात मंजूघोषा ने वापस जाने के लिए अनुमति मांगी, तब मेधावी ऋषि को अपनी भूल और तपस्या भंग होने का आत्मज्ञान हुआ।

 

जब ऋषि को ज्ञात हुआ कि मंजूघोषा ने किस प्रकार से उनकी तपस्या को भंग किया है तो क्रोधित होकर उन्होंने मंजूघोषा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया। इसके बाद अप्सरा ऋषि के पैरों में गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा। मंजूघोषा के बार-बार विनती करने पर मेधावी ऋषि ने उसे श्राप से मुक्ति पाने के लिए बताया कि पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से तुम्हारे समस्त पापों का नाश हो जाएगा और तुम पुन: अपने पूर्व रूप को प्राप्त करोगी। अप्सरा को मुक्ति का मार्ग बताकर मेधावी ऋषि अपने पिता के महर्षि च्यवन के पास पहुंचे। श्राप की बात सुनकर च्यवन ऋषि ने कहा कि- ''हे पुत्र यह तुमने अच्छा नहीं किया, ऐसा कर तुमने भी पाप कमाया है, इसलिए तुम भी पापमोचनी एकादशी का व्रत करो। इस प्रकार पापमोचनी एकादशी का व्रत करके अप्सरा मंजूघोषा को श्राप से मुक्ति मिल गई और मेधावी ऋषि के भी सभी पापों से मुक्ति प्राप्त हो गई।