शनि देव सूर्य और छाया के पुत्र हैं। उनकी दृष्टि भयभीत करने वाली है।

शनिदेव की ऐसी दृष्टि उन्हें मिले एक श्राप के कारन है। आज की कड़ी में हम आपको शनिदेव को मिले भयानक श्रापों के विषय में बताएँगे.

ज्योतिष शास्त्र में शनि देव का अपना महत्त्व है और कहा जाता है कि अगर शनि देव किसी पर प्रसन्न हो जाए तो उसको बेड़ा पार कर देते है.

वहीं अगर शनि देव किसी से नाराज़ हो जाए तो उनके प्रकोप से बच पान मुश्किल है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शनि एक धीमी गति से चलने वाला ग्रह है इसलिए उनको एक राशी से दूसरी में जाने के लिए ढाई वर्ष का समय लगता है।

शास्त्रों में कहा गया है कि शनि देव लंगडाकर चलते है जिस वजह से उनकी चलने की गति बाकि ग्रहों से काफी धीमी है और उनको एक राशी से दूसरी राशी में जाने के लिए ढाई वर्ष का समय लग जाता है.

लेकिन क्या आप जानते है कि कैसे शनि देव लंगड़े हुए थे? अगर नहीं तो आज हम आपको बताने जा रहे है शनि देव के लंगड़े होने की कथा,तो आइये जानते है शनि देव के लंगड़े होने की कथा।

आइये शुरू करते हैं

पत्नी का श्राप

शनि के दो विवाह हुए थे। पहली पत्नी का नाम नीलिमा था और दूसरी पत्नी मांदा थीं।

मांदा को धामिनी भी कहा जाता है। मांदा चित्ररथ की पुत्री थीं। शनिदेव कृष्ण के भक्त थे। वो एक बार भगवान कृष्ण के ध्यान में लीन थे। तभी उनकी दूसरी पत्नी धामिनी पुत्र प्राप्ति की इच्छा से उनके समक्ष पहुंची। परन्तु ध्यान में मग्न शनि ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया और स्तुति में लीन रहे। वो बहुत देर तक प्रतीक्षा करती रहीं परन्तु शनि ने कोई उत्तर नहीं दिया।

तब मांदा ने क्रोधित होकर शनिदेव को श्राप दिया कि वो जिस पर भी दृष्टि डालेंगे उसका विनाश हो जायेगा। जब शनिदेव को अनुभव हुआ कि उनसे बहुत बड़ी गलती हो गयी है। तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उसके बाद से ही शनिदेव केवल उन पर ही दृष्टि डालते हैं जिनको उन्हें पापों का दंड देना होता है।

माँ पार्वती का श्राप

जब भी हम कुंडली के माध्यम से अपने जीवन के विषय में जानते हैं। प्रायः देखा जाता है कि सभी ग्रह तीव्र गति से राशि परिवर्तन करते हैं परन्तु शनि की गति बहुत धीमी होती है। यहाँ तक की शनि वर्षों तक एक ही राशि में रहते हैं। शनि की इस धीमी गति का कारण और कुछ नहीं अपितु पार्वती माँ के द्वारा दिया गया श्राप है ।

लंगड़ा होने का श्राप

एक बार शनिदेव कैलाश पर्वत पहुंचे। उन्होंने अपनी दृष्टि नीचे की हुई थी।

माँ पार्वती ने उनसे इसका कारण पूछा ।तब उन्होंने कहा कि उनकी दृष्टि से किसीको भी बहुत हानि पहुँच सकती है यह सुन माँ पार्वती उनका उपहास करने लगीं और उन्होंने अपने पुत्र गणेश को वहां बुलाया।

जैसे ही शनि की दृष्टि गणेश जी पर पड़ी उनका मस्तिष्क धड़ से अलग हो गया। तब क्रोध में पार्वती ने श्राप दिया कि वो अंग विहीन हो जायेंगे। शनिदेव के चेतावनी देने के पश्चात भी उन्हें ऐसा श्राप स्वीकार करना पड़ा।

इस श्राप के कारण शनि लंगड़े हो गए और उनके चलने की गति धीमी हो गयी। जब पार्वती जी का क्रोध शांत हुआ तो वो अपना श्राप तो वापस नहीं ले सकती थीं परन्तु इसका प्रायश्चित करने के लिए उन्होंने शनि को वरदान दिया कि वो सभी ग्रहों के राजा होंगे।

एक दूसरी कथा के अनुसार :

शनिदेव की सौतेली माँ की वजह से शनिदेव को श्राप लगा गया था जिस वजह से वे लंगड़े हो गए थे. दरअसल इस कथा में शनि देव के पिता सूर्य देव और माता संज्ञा देवी का वर्णन है। कथा के अनुसार सूर्य देव का तेज उनकी पत्नी संज्ञा देवी सहन नहीं कर पा रही थी जिस वजह से उन्होंने अपने शरीर से अपने जैसी ही एक प्रतिमूर्ति तैयार की और उसका नाम स्वर्णा रख दिया. संज्ञा ने स्वर्णा को आदेश दिया कि तुम मेरी अनुपस्थिति में सूर्य देव की सेवा करो और पत्नी सुख प्राप्त करो. स्वर्णा को ये आदेश देकर वह अपने पिता के घर चली गई।

संज्ञा देवी के प्रतिरूप स्वर्णा को सूर्य देव भी पहचान नहीं पाए, इसी बीच सूर्यदेव से स्वर्णा को पांच पुत्र व दो पुत्रियाँ हुई।

स्वर्णा अपने बच्चों का ध्यान तो रखती लेकिन संज्ञा के बच्चों की उपेक्षा करने लगी। तभी एक दिन संज्ञा के पुत्र बालक शनि को तेज भूख लगी तो उसने अपनी माँ से भोजन माँगा।

तब स्वर्णा ने कहा अभी तुम कुछ देर ठहरों, पहले मैं भगवान को भोग लगा लूँ, तुम्हारे छोटे भाई बहनों को खाना खिला दूँ फिर तुम्हे भोजन दूंगी। इतना सुनते ही बालक शनि को क्रोध आ गया और उसने भोजन को लात मारने के लिए अपना पैर उठाया, तभी स्वर्णा ने बालक शनि को श्राप दे दिया कि तेरा पाँव अभी टूट जाये।

श्राप के डर से शनि अपने पिता सूर्य देव के पास गए और सारा किस्सा सुना दिया।

तब सूर्य देव को समझ आया कि कोई भी माता अपने बच्चे को इस तरह का श्राप नहीं दे सकती. तब सूर्य देव शक हुआ और उन्होंने क्रोध में आकर पूछा कि बताओ तुम कौन हो?

सूर्य का तेज देखकर स्वर्णा घबरा गई और संज्ञा की सारी सच्चाई बता दी। तब सूर्य देव ने बालक शनि को बताया कि स्वर्णा तुम्हारी माता तो नहीं है परन्तु माँ का प्रतिरूप है इसलिए उसका श्राप व्यर्थ तो नहीं जाएगा लेकिन उतना कठोर भी नहीं होगा।

इसका मतलब है कि श्राप से तुम्हारी टांग तो नहीं टूटेगी लेकिन तुम आजीवन लंगड़ाकर जरुर चलोगे। कहा जाता है कि तब से लेकर आज तक शनि देव लंगड़ाकर ही चलते है और यही कारण उनकी मंदगति का भी है ।