पांडवों से लेकर कौरवों तक महाभारत में कई ऐसे किरदार हैं जिनकी कहानी हैरान करती है।

दिलचस्प ये है कि इस कहानी का हर किरदार एक-दूसरे से किसी न किसी रूप में जुड़ा हुआ है।  महाभारत के युद्ध में इन किरदारों की अहम भूमिका भी रही है।

महाभारत में ऐसी ही एक कहानी है अर्जुन पुत्र इरावन की. जिसने अपने पिता को विजय करवाने के लिए खुद की बलि दी थी। यही नहीं श्रीकृष्ण को स्त्री बनकर करना पड़ा था इस योद्धा से विवाह । जिसके पीछे एक बेहद रोचक कथा है।

अर्जुन पुत्र इरावान

इरावान महाभारत का बहुचर्चित तो नहीं किन्तु एक मुख्य पात्र है। इरावान महारथी अर्जुन का पुत्र था जो एक नागकन्या से उत्पन्न हुआ था। दरअसल  द्रौपदी से विवाह के पूर्व देवर्षि नारद के सलाह के अनुसार पाँचों भाइयों ने तय  किया कि द्रौपदी एक वर्ष तक किसी एक भाई की पत्नी बन कर रहेगी। उस एक वर्ष में अगर कोई भी अन्य भाई भूल कर भी बिना आज्ञा द्रौपदी के कक्ष में प्रवेश करेगा तो उसे 12 वर्ष का वनवास भोगना पड़ेगा।देवर्षि ने ये अनुबंध  इस लिए करवाया था ताकि भाइयों के बिच किसी प्रकार का मतभेद ना हो। 

अर्जुन को वनवास

एक बार कुछ डाकुओं ने एक ब्राम्हण की गाय छीन ली तो वो मदद के लिए युधिष्ठिर के महल पहुँचा। वहाँ उसे सबसे पहले अर्जुन दिखा जिससे उसने मदद की गुहार लगायी। अर्जुन को याद आया कि पिछली रात उसने अपना गांडीव युधिष्ठिर के कक्ष में रख दिया था। इस समय युधिष्ठिर और द्रौपदी कक्ष में थे और ऐसे में वहाँ जाने का अर्थ अनुबंध का खंडन करना था किन्तु ब्राम्हण की सहायता के लिए उन्हें कक्ष में जाना पड़ा।जब वे दस्युओं को मारकर ब्राह्मण की गाय छुड़ा लाये तो अनुबंध की शर्त के अनुसार वनवास को उद्धत हुए।अन्य भाइयों के लाख समझने के बाद भी वे वनवास को निकल गए।

उलूपी और अर्जुन का विवाह

भ्रमण करते हुए वे भारत के उत्तर पूर्व में पहुँचे और एक सरोवर में स्नान के लिए उतरे।वहाँ नागों का वास था जिनकी  राजकुमारी उलूपी अर्जुन पर मुग्ध हो गयी।

उलूपी विधवा थी और अर्जुन से विवाह की प्रबल इच्छा के कारण उलूपी ने अर्जुन को जल के भीतर खींच लिया और नागलोक में ले आयी।वहाँ उलूपी के बार बार आग्रह करने पर अर्जुन ने उससे विवाह किया और गुप्त रूप से उसी के कक्ष में रहने लगे।

किन्तु बाद में उनका रहस्य खुलने पर उलूपी के पिता ने उनके सामने शर्त रखी कि उलूपी और उनकी जो संतान होगी उसे वहीँ नागलोक में रहना होगा। इन्ही का पुत्र इरावान हुआ जिसे नागलोक में ही छोड़ कर अर्जुन एक वर्ष पश्चात आगे की यात्रा को निकल गए।

महारथी इरावान

अर्जुन पुत्र इरावानबहुत ही मायावी योद्धा था जिसने महाभारत के युद्ध में पांडवों की ओर से युद्ध किया था।। उन्होंने महाभारत के युद्ध में हिस्सा लेते बहादुरी से कौरवों के खिलाफ लड़ाई की और बहुत नुकसान पहुंचाया।

इरावन की दक्षिण भारत विशेषकर तमिलनाडु में बड़ी महत्ता है। साथ ही साथ किन्नर समाज में भी इरावान को देवता की तरह पूजा जाता है। दक्षिण भारत में एक विशेष दिन किन्नर इकठ्ठा होकर इरावान के साथ सामूहिक विवाह रचाते हैं और अगले दिन इरावन को मृत मानकर वे सभी एक विधवा की भांति विलाप करते हैं। इस प्रथा के पीछे भी महाभारत की एक कथा है।

इरावान की कथा

भीष्म पर्व के 91वें अध्याय के अनुसार आठवें दिन जब सुबलपुत्र शकुनि और कृतवर्मा ने पांडवों की सेना पर आक्रमण किया, तब अनेक सुंदर घोड़े और बहुत बड़ी सेना द्वारा सब ओर से घिरे हुए शत्रुओं को संताप देने वाले अर्जुन के बलवान पुत्र इरावान ने रणभूमि में कौरवों की सेना पर आक्रमण कर दिया।

इरावान द्वारा किए गए इस अत्यंत भयानक युद्ध में कौरवों की घुड़सवार सेना नष्ट हो गयी। तब शकुनि के पुत्रों ने इरावान को चारों ओर से घेर लिया। इरावान ने अकेले ही लंबे समय तक इन छहों से वीरतापूर्वक युद्ध कर उन सबका वध कर डाला।यह देख दुर्योधन भयभीत हो उठा और वह भागा हुआ राक्षस ऋष्यश्रृंग के पुत्र अलम्बुष के पास गया, जो पूर्वकाल में किए गए बकासुर वध के कारण भीम का शत्रु बन बैठा था। ऐसे में अलम्बुष इरावान से युद्ध करने को तैयार हो गया।

इरावान का विवाह

कहा जाता है कि इरावान की मृत्यु से एक दिन पहले सहदेव, जिन्हे त्रिकालदृष्टि प्राप्त थी, ने इरावान को बता दिया था कि अगले दिन उनकी मृत्यु होने वाली है।

ये सुनकर इरावान जरा भी घबराये नहीं किन्तु उन्होंने श्रीकृष्ण से ये प्रार्थना की कि वे अविवाहित नहीं मरना चाहते। अब इतनी जल्दी इरावान के लिए कन्या का प्रबंध कहाँ से होता?

इस कारण श्रीकृष्ण ने वहाँ युद्ध में उपस्थित राजाओं से उनकी कन्या का विवाह इरावान से करने को कहा। किन्तु ये जानते हुए कि इरावान अगले दिन मरने वाला है, कौन राजा उसे अपनी कन्या देता?

कोई और उपाय ना देख कर स्वयं श्रीकृष्ण ने मोहिनी रूप में इरावान के साथ विवाह किया।

इरावान की मृत्यु

अगली सुबह रणभूमि में  इरावान और अलम्बुष का कई तरह से  माया-युद्ध हुआ। अलम्बुष राक्षस का जो जो अंग कटता, वह पुनः नए सिरे से उत्पन्न हो जाता था।युद्धस्थल में अपने शत्रु को प्रबल हुआ देख उस राक्षस ने अत्यंत भयंकर एवं विशाल रूप धारण करके अर्जुन के वीर एवं यशस्वी पुत्र इरावान को बंदी बनाने का प्रयत्न आरंभ किया।

उसी समय नागकन्या पुत्र इरावान के मातृकुल के नागों का समूह उसकी सहायता के लिए वहां आ पहुंचा। रणभूमि में बहुतेरे नागों से घिरे हुए इरावान ने विशाल शरीर वाले शेषनाग की भांति बहुत बड़ा रूप धारण कर लिया।

तब राक्षसराज अलम्बुष ने कुछ सोच-विचार कर गरूड़ का रूप धारण कर लिया और समस्त नागों को भक्षण करना आरंभ किया।जब उस राक्षस ने इरावान के मातृकुल के सब नागों को भक्षण कर लिया। इसके पश्चात् उसने वीर इरावन को भी अपनी तलवार से मार डाला। इस तरह अगले दिन इरावन की मृत्यु के पश्चात् मोहिनी रुपी भगवान कृष्ण विधवा हो गए।

इरावान को पूजते हैं किन्नर

यही प्रथा किन्नर इरावान के साथ मानते हैं इसी कारण देश भर के किन्नर इरावान को अपने आराध्य के रूप में पूजते हैं।

आज भी देश के कई क्षेत्रों में इरावन की हर साल विशेष पूजा-अर्चना होती है। वर्ष में एक दिन ऐसा आता है जब देश भर के किन्नर तमिलनाडु के कूवागम गांव में एकत्र होते हैं। यह गांव तमिलनाडु के विल्लूपुरम जिले में आता है।

सभी किन्नर इस दिन पूरी तरह सज कर और रंग-बिरंगी साड़ियों में इरावन से विवाह रचाते हैं। यह विवाह एक दिन के लिए ही होता है। अगले दिन अपने देवता इरावन की मौत के साथ उनका यह वैवाहिक जीवन खत्म हो जाता है और वे इस शोक में विलाप करते हैं। विल्लूपुरम जिले के इस गांव में भगवान इरावन की पूजा ‘कूथानदवार’ के रूप में होती है।