वट सावित्री व्रत, इन 5 चीजों के बिना अधूरी रहेगी पूजा, जानें उत्तम पूजा मुहूर्त एवं विधि
वट सावित्री व्रत का शुभ मुहूर्त
- अमावस्या तिथि आरंभ: 9 जून 2021, बुधवार की दोपहर 01 बजकर 57 मिनट से
- अमावस्या तिथि समाप्त: 10 जून 2021, गुरुवार की शाम 04 बजकर 22 मिनट तक
हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है। अखंड सौभाग्य के लिए महिलाओं का वट सावित्री व्रत मंगलवार से प्रारंभ हो रहा है। वट सावित्री की तिथि पर ग्रह नक्षत्र के उतार-चढ़ाव के कारण इस साल संशय की स्थिति बनी है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, 9 जून यानी बुधवार को महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए व्रत रखेंगी और जबकि इसके अगले दिन 10 जून यानी गुरुवार कि सुबह को वट वृक्ष में सूत्र बांधकर परिक्रमा की जाएगी। वट वृक्ष की पूजा के बाद महिलाएं पारण करेंगी। हालांकि कुछ महिलाएं 10 जून गुरुवार को ही वट सावित्री का उपवास रखेंगी, उसी दिन परिक्रमा करेंगी। अगले दिन 11 जून शुक्रवार को पारण करेंगी।
हिंदू पंचांग के अनुसार, बुधवार को 1 बजकर 58 मिनट तक चतुर्दशी है। इसके बाद अमावस्या लग जाएगी। बुधवार को अमावस्या लगने के कारण वट सावित्री व्रत आज भी किया जा सकता है। हालांकि उदया तिथि में व्रत को रखना व पूजा-अर्चना करना उत्तम माना जाता है।
10 जून को वट सावित्री व्रत के साथ साल का पहला सूर्य ग्रहण भी लगेगा। यह ग्रहण दोपहर 1 बजकर 42 मिनट से शुरू होगा, जबकि शाम 06 बजकर 41 मिनट पर समाप्त होगा। ग्रहण के दौरान पूजा-अर्चना की मनाही होती है। ऐसे में महिलाएं संशय में हैं कि 10 जून को वट पूजा करें या नहीं। आपको बता दें कि 10 जून को लगने वाला सूर्य ग्रहण भारत में नजर नहीं आएगा। साथ ही इसका भारत में प्रभाव भी नहीं दिखेगा। इस वजह से देश में सूतक काल मान्य नहीं होगा। ऐसे में हर साल की तरह व्रत को किया जा सकता है।
वट सावित्री व्रत का महत्व-
ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को सुहागिनें पति की लंबी आयु की कामना के लिए वट सावित्री व्रत रखती हैं। इस दिन वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। महिलाएं वट को कलावा बांधते हुए वृक्ष की परिक्रमा करती हैं।
इस पूजा में ये 5 चीजें बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है जिनके बिना व्रत और पूजा अधूरी रहती है. आइये जानें।
हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का ख़ास महत्त्व है। इस व्रत को महिलाएं बहुत श्रद्धा से रखती हैं। यह व्रत हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। वट सावित्री व्रत को सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और संतान प्राप्ति के लिए रखती हैं। इस व्रत का संबंध सावित्री देवी से है, पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री देवी ने अपने पति सत्यवान की आत्मा को अपने तपोबल से यमराज से वापस ले लिया था। यह घटना ज्येष्ठ अमावस्या तिथि को हुई थी। इस तिथि को ही शनि जयंती भी मनाई जाती है.
वट सावित्री व्रत की पूजा बहुत ही विधि विधान से की जाती है. इस पूजा के लिए इन चीजों की जरूरत होती है इसके बिना पूजा अधूरी रहती है. आइये जानें इन चीजों के बारे में.
वट वृक्ष: वट सावित्री वृक्ष पूजा के लिए बरगद का वृक्ष बहुत जरूरी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार वट वृक्ष ने अपनी जटाओं से सावित्री के पति सत्यवान की मृत शरीर को घेर रखा था। ताकि जंगली जानवर उनके शरीर को कोई नुकसान न पहुंचा पायें. इसी लिए वट वृक्ष की पूजा की जाती है।
चना: पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमराज ने सावित्री को उनके पति की आत्मा को चने के रूप में लौटाया था। इस लिए इस व्रत पूजा में प्रसाद के रूप में चना रखा जाता है।
कच्चा सूत: मान्यता है कि सावित्री ने वट वृक्ष में कच्चा सूत बांधकर अपने पति की शरीर को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की थी. इस लिए व्रत में कच्चा सूत आवश्यक है।
सिंदूर: हिंदू धर्म में सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना गया है. सुहागिन महिलायें सिंदूर को वट वृक्ष में लगाती हैं. उसके बाद उसी सिंदूर से महिलाएं अपनी मांग भरकर अखंड सौभाग्य और पति की लंबी उम्र का वरदान मांगती हैं।
बांस का पंखा {बेना}
ज्येष्ठ में बहुत गर्मी होती है। वट वृक्ष को अपना पति मानकर महिलाएं उसे बांस के पंखे से हवा देती हैं। मान्यता है कि सत्यवान लकड़ी काटते समय अचेत अवस्था में गिरे थे तो सावित्री ने उन्हें बांस के पंखे से हवा झला था। इसी लिए इस व्रत में बांस के पंखे की जरूरत होती है।
वट सावित्री पूजा विधि
- शादीशुदा महिलाएं अमावस्या तिथि को सुबह उठें, स्नानादि करें.
- लाल या पीली साड़ी पहनें.
- दुल्हन की तरह सोलह श्रृंगार करें.
- व्रत का संकल्प लें
- वट वृक्ष के नीचे आसन ग्रहण करें.
- सावित्री और सत्यवान की मूर्ति स्थापित करें.
- बरगद के पेड़ में जल पुष्प, अक्षत, फूल, मिष्ठान आदि अर्पित करें.
- कम से कम 5 बार बरगद के पेड़ की परिक्रमा करें और उन्हें रक्षा सूत्र बांधकर आशीर्वाद प्राप्त करें.
- फिर पंखे से वृक्ष को हवा दें
- हाथ में काले चने लेकर व्रत की संपूर्ण कथा सुनें
2 Comment(s)
Rediscovering the spiritual heritage of our ancestors has been a journey of self-discovery and inner peace. The timeless wisdom encapsulated in our traditions offers solace in a chaotic world.
The stories passed down through generations are more than mere legends; they're windows into the human experience, teaching us about morality, resilience, and the pursuit of truth.
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